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Showing posts from October, 2016

Autumn chill

whispering through the autumn chill in the eddy of yellowing leaves, those old, old words haunt again -- I sigh at the unworn mangalsutra and slide the drawer back in place.

युद्ध आवश्यक है

हाँ युद्ध आवश्यक है। किन्तु न मेरी पत्नी विधवा हो, न मेरे सन्तान अनाथ। मेरे माता पिता अपने जीवन का अन्तिम पड़ाव मेर पासिंग आउट परेड के सॅल्यूट वाले फोटो को देख, सिसक सिसक के न बिताएँ। युद्ध तो आवश्यक हैं। पर मेरा कैरियर भी आवश्यक है। वह यू एस का वीज़ा, वह वी पी का ओहदा वह थाइलैंड का ... जो भी थाइलैंड में होता है। और वह पाँच करोड का फ्लैट सागर किनारे। आवश्यक है, आवश्यक है युद्ध। मेर जानता हूूँ कि सिपाही सियाचेन में ठण्ड और तूफान से जूझते या एल ओ सी पर अचानक गोलीबारी से या आतंकियों से निर्भय भिडकर राष्ट्र के रक्षा में अमर हो जाते हैं, पर मेरा उत्तरदायित्व भी मैंने निभाया है और फेसबुक एवं ट्विटर पर सदैव कोटि कोटि श्रद्धाँजली अर्पित की है। युद्ध तो आवश्यक हैं। परन्तु यह मेरे भाग्य में नहीं कि सीमा पर सुबह के तीन बजे ठण्डा चाय का प्याला पकडे नीन्द से जिहाद लडूूँ, न बाॅडीं आर्मर पहनकर (अगर मिल जाए) रेग़िस्तान पर तपती धूप से क्रूसेड करने निकल पडूँ। और किसी यू एन शान्ति मिशन में रुवान्डा की सैर करना तो भूल ही जाओ। हम गोवा से काम चला लेंगे। पर हाँ युद्ध